जैन धर्म तीर्थ यात्रा Post (100 Part 3) 

कैलाश पर्वत - अष्टापद निर्वाण भूमि

जय जिनेन्द्र ।। भगवान आदिनाथ जी की मूल मोक्षस्थली अष्टापद कैलाश सिद्ध क्षेत्र यात्रा के तीसरे भाग की भाववन्दना में आज जानते हैं,
कैलाश अष्टापद पर, चक्रवर्ती भरत द्वारा बनवाये गए भव्य जिनालयों के निकटवर्ती उत्कीर्णित मंगलकलश की आकृति के बारे में :–

1. यहां कैलाश अष्टापद के निकट अनेक रोचक आकृतियां मिलती है, विशालकाय मन्दिरनुमा शिखर, चरण चिन्ह, कलश आकृति आदि ऐसे कई जैन धर्म से जुड़े भग्नावशेष,,, कैलाश-शिखर के आसपास बिखरा पड़ा है, हो भी क्यों न ।

2. महापुराण के संदर्भ से, देवाधिदेव आदिनाथ भगवान ने यहीं से तो कठोर तप करके चार अघातिया कर्मो को विनष्ट कर मोक्ष महल के सिद्ध शिला रूपी द्वार का मार्ग प्रशस्त किया ।

3. यहाँ की स्थानीय जनजाति की पूर्व मान्यता के अनुसार जब आदिनाथ बाबा के बेटे (अर्थात् चक्रवर्ती भरत) ने यहाँ बड़ी पूजा-अनुष्ठान (अर्थात् पंचकल्याणक-प्रतिष्ठा-महोत्सव) करवाया था, तब उन्होंने कैलाश-शिखर को वेदिका का पृष्ठभाग बनाया था, और तभी उस अनुष्ठान की स्मृति-स्वरूप यहां कलशाकृति बनायी थी। #आओ_जैनधर्म_को_जानें

4. यदि यहां की प्राचीन मान्यताओं को अगर हम तथ्यात्मकता मानें, तो इससे पंचकल्याणक-प्रतिष्ठा-महोत्सव के द्वारा जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा-विधि की प्राचीनतम-सूचना मिलती है, जैसा कि पूर्वाचार्यों ने पुराण शास्त्र आदि में लिखा ।

5. यदि आप नीचे दी हुई कैलाश-शिखर के चित्र को गौर से देखें, तो एक स्पष्ट और एक कुछ कम स्पष्ट — इस प्रकार दो कलशों की आकृति दोनों सिरों पर दिखाई देगी। और दोनों के बीच में वेदी जैसी आकृति उकेरी हुई दिखेगी।

6. इन्हें देखकर वहाँ हुई जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा-विधि की प्राचीनतम-सूचना मिलती है। जो कि इस युग के आरम्भ में प्रथम-चक्रवर्ती भरत के द्वारा जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा-विधि की ओर संकेतरूप में मानी जी सकती है।

7. आपके यह जानकर आश्चर्य होगा कि तिब्बत के मूल निवासी यहाँ के स्थानीय लोग, जो टूरिस्ट गाइड के साथ ऊपर जाते हैं, वे सभी अष्टापद-पर्वत की ही साष्टांग वंदना करते हैं। और वे इसे कभी भी ‘अष्टापद’ नहीं कहते हैं, बल्कि ‘अष्टपद’ कहते हैं। और यहाँ वे आदिप्रभु की वंदना करने की बात कहते हैं। खास बात यह है कि उनमें से कोई भी कभी अष्टापद-शिखर की ओर कदम तक नहीं बढ़ाता है, सिर्फ मन वच काय से नमन ही करते हैं ।

आगे की यात्रा में जानते हैं, अष्टापद कैलाश पर भरत चक्रवर्ती द्वारा बनाये गए उन भव्य जिनालय व तीर्थंकर भगवान की अवगाहना रूप जिनबिम्बो की जो आज भी आश्चर्यजनक रूप से मौजूद हैं,..."जी" सही पढ़ा आपने - क्रमश भाग - 4
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