जैन धर्म तीर्थ यात्रा - Post No. 93


जय जिनेन्द्र मित्रों, आज की भाववन्दना, थाईलैंड के बैंकॉक शहर में स्थित एक सुंदर दिगम्बर जैन जिनालय की है,, यहां पर मूलनायक श्री १००८ महावीर भगवान की दिव्य व मनोरम प्रतिमा जी विराजमान हैं । जिनके दर्शन मात्र से ही मन शांति को प्राप्त होता है । मन्दिर का माहौल बहुत शांत व पवित्र है ।

मन्दिर निर्माण का इतिहास -
अप्रैल 2004 में, अखिल भारतीय दिगंबर जैन महासभा के अध्यक्ष श्री निर्मल कुमार जी सेठी ने बैंकॉक का दौरा किया और उन्होंने दिगंबर जैन एसोसिएशन बनाने और बैंकॉक में रहने वाले दिगंबर जैनियों के लिए एक जिनालय का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया। #आओ_जैनधर्म_को_जानें #Aao_JainDharm_Ko_Jaanein

उस समय केवल 1215 ज्ञात दिगंबर जैन परिवार थे। इन सदस्यों ने फिर एक साथ मिलकर बैंकॉक में रहने वाले अन्य दिगंबर जैनियों की तलाश शुरू कर दी और जल्द ही नहीं। 60-70 परिवारों तक बढ़ गया। वर्तमान में बैंकॉक और आसपास के क्षेत्र में रहने वाले 100 से अधिक परिवारों ने अपना नाम दर्ज कराया है।

इसके बाद समिति के सदस्यों ने जिनालय भवन की खरीद के लिए धन एकत्र करना शुरू किया। समाज के सभी सदस्यों ने एक 3 मंजिला दुकान घर की इमारत, घर # 143/3, के बिल्डिंग अपार्टमेंट के पास, सोई पुथा ओसोथ, महा सेट रोड, सुरीवोंगसे, बैंकॉक की खरीद के लिए पर्याप्त धन देने के लिए खुले मन से दान दिया । #जैन_धर्म_तीर्थ_यात्रा

श्री जिनबिंब को अनंत चौदस, 6 सितंबर 2006 के शुभ दिन पर इस जिनालय में स्थानांतरित कर दिया गया था ।

तत्पश्चात कुछ सदस्यों ने स्वेच्छा से दिगंबर जैन फेडरेशन का गठन किया, और जिनालय की कार्य व्यवस्था हेतु बैंकॉक जेम्स एंड ज्वेलरी टॉवर, सुरीवांग क्षेत्र में स्थान दिया ।

श्री 1008 महावीर दिगंबर जैन मंदिर,
# 143/3, सोई पुथा ओसोथ, महा सेट रोड के
पास, के. बिल्डिंग अपार्टमेंट के पास, सूरीवोंग,
बैंकॉक-10500,
थाईलैंड,

जिनालय दूरभाष: +662-2337894

पहुंचने का मार्ग -
सुकुमवित बीटीएस लाइन से सियाम के सिलोम लाइन में जाने तक आप सालडींग पर उतर सकते हैं और केवल 10 मिनट में बाइक टैक्सी या कार टैक्सी ले सकते हैं। मंदिर के पास उपलब्ध दो भारतीय किराना दुकानें बहुत उपयोगी हैं।
पास में ही श्वेतांबर मंदिर भी है।

नमनकर्ता
सुलभ जैन (बाह)
_ Sulabh Jain (Bah)
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यहां साप्ताहिक जैन पाठशाला महिला मंडल सदस्यों द्वारा चलाई जाती है। कुछ सदस्य णमोकार महा मंत्र जाप के लिए हर हफ्ते जिनालय में एकत्रित होते हैं । इस पुनीत कार्य की हम सब बहुत अनुमोदना करते हैं ।













जैन धर्म तीर्थ यात्रा - Post No. 94


झीलों की नगरी, उदयपुर (राजस्थान) में स्थित यह पावन तीर्थ लगभग 753 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। जिसके प्रमाण यहां पर एक शिलालेख के अनुसार विक्रम संवत 1325 अंकित हैं।

"श्री चन्द्र पार्श्वनाथ का जी मन्दिर"

यहां पर मुलनायक प्रभु श्री चंदा पार्श्वनाथ जी की 35 इंच ऊंचाई एवं 30 इंच चौड़ाई आकर की, पद्मासन मुद्रा में, श्वेत वर्ण की, सात फणो से सुशोभित, सुंदर परिकर में प्रतिमा जी प्रतिष्ठित है। ऐसा कहा जाता है कि चन्द्रमा जैसी शीतल और सफेद रोशनी से चमकती यह प्रतिमा जी बिल्कुल चन्द्रमा जी की तरह दिखती है। जिनके दर्शन करने से मन को शीतलता और रोशनी मिलती है। यह सुंदर प्रतिमा सभी दर्शांथियों को अपनी ओर आकर्षित करती है जिसकी वजह यह पावन प्रतिमा जी "श्री चन्द्र पार्श्वनाथ जी भगवान" के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह तीर्थ 108 श्री पार्श्वनाथ जी तीर्थ की श्रृंखला में सम्मिलित है।

इतिहास के अनुसार... मेवाड़ त्याग, बलिदान, पराक्रम और वीरों की धरती के नाम से जाना जाता है। कई महान शूरवीरों और इतिहास रचने वालों की भी यह जन्म स्थली रही है। जिनकी त्याग, बलिदान एवं पराक्रमी गाथाओं को सुनकर आज भी हमें गर्व होता है और हम नतमस्तक हो जाते है.. इस जिनालय का जीर्णोद्वार श्री रघुनाथ सिंह जी खाब्या साहब ने वि. सं.1982 में करवाया था। मंदिर की दीवारों और छत पर पुरानी पेंटिग्स और कई रंगों की सेरेमिक टाईल्स और कांच पर काम बहुत ही सुंदर है। वर्तमान में परिकर की अजंनशलाका परम पूज्य प्रेमरामचंद्रसूरिजी म.सा.समुदाय के प.पू.आचार्य श्री किर्तीयशसुरीजी म. सा. की निश्रा में वि. सं. 2067 के कार्तिक सुद 13 से कार्तिक वद 5 (19 से 25 नवम्बर 2010) बोरीवली वेस्ट, मुंबई में करावायी गयी थी।जिसकी प्रतिष्ठा उदयपुर में प. पू. गणिवर्य श्री दिव्यकिर्तीविजय जी म.सा. और प. पू. श्री पूण्यकिर्तीविजय जी म. सा. की निश्रा में वि. सं. 2067 के मागसर सुद 9 को (15.12.2010) को संपन्न हुई थी। #आओ_जैनधर्म_को_जानें #Aao_JainDharm_Ko_Jaanein

उदयपुर में लगभग 75 से अधिक जिनालय प्रतिष्ठित है। इस पावन भूमि पर जैन तपागच्छ की उदगम स्थली प्राचीन आयड़ जैन श्वेताम्बर महातीर्थ भी स्थापित है। साथ में सविना पार्श्वनाथ जी का मंदिर भी प्रतिष्ठित है जो कि 108 पार्श्वनाथ जी में सम्मिलित है। प्रभु श्री पद्मनाथ स्वामी जी का भी यहां एक बड़ा जिनालय भी स्थापित है। जो कि आने वाले 24 तीर्थंकरों के प्रथम तीर्थंकर भगवान है।

उदयपुर के समीप भी कई प्राचीन एवं नवीन तीर्थो की श्रंखला है जिसमें विश्वविख्यात श्री केशरीया जी तीर्थ, श्री राणकपुर जी तीर्थ और श्री करेड़ा पार्श्वनाथ जी तीर्थ भी प्रतिष्ठित है। इन सभी तीर्थों के सहित उदयपुर में सुंदर, व्यवस्थित और वातानुकूलित धर्मशाला एवं भोजनशाला की अच्छी सुविधाएं है। उदयपुर एन.एच. 8 और 76 के मुख्य मार्ग पर स्थित है। प्रसिद्ध श्रीनाथ जी भगवान का पावन मंदिर भी नाथद्वारा में स्थित है जो कि उदयपुर से लगभग 40 km की दूरी पर है। उदयपुर पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से कई आवागमन के साधन है। यह खूबसूरत शहर रेल और हवाई मार्ग से भी जुड़ा हुआ है। #आओ_जैनधर्म_को_जानें #Aao_JainDharm_Ko_Jaanein

श्री चंदा पार्श्वनाथ जी का उल्लेख "135 नाम गर्भित श्री पार्श्वनाथ जी स्तवन", "श्री पार्श्वनाथ जी नाम माला", "तीर्थ माला", "श्री पार्श्वनाथ चैत्य परीपती".. ग्रंथों में भी है।

स्तुति:
जे नित्य अविरत पुनम शशीनी चांदनी फेलावती,
संतापने सहु ताप टाळी भविक मन मलकावती,
आत्मातणो उदयंकरी पूर हर्षनां उभरावती,
ते पार्श्व चंदा मूरत नमतां हुं वर्यो, टाढक अति..

जाप मंत्र: ॐ ह्रीं अर्हं, श्री चंदा पार्श्वनाथाय नमः

पता: श्रीचंदा पार्श्वनाथ श्वेतांबर जैन मंदिर , घंटाघर - पेलेस मेन रोड , उदयपुर (राजस्थान)

लेख में किसी भी प्रकार की त्रुटी और जिनशासन के विरुद्ध कुछ लिखा गया हो तो क्षमा और...
Regards

पोस्ट आभार - श्री अनिल मेहता जी








जैन धर्म तीर्थ यात्रा - Post No. 95


मध्य प्रदेश के दमोह जिले में तीर्थ क्षेत्र कुंडलपुर से 55 किमी दूर, एक महा अतिशयकारी तीर्थ क्षेत्र स्थित है। ग्राम चंडी चोपड़ा,, जिसे लोग चोपड़ा चौबीसा के नाम से भी जानते हैं । जहां भगवान शांतिनाथ की खरगासन में पाषाण प्रतिमा सदियों पुरानी है

1. किंतु यह तीर्थ क्षेत्र दमोह जबलपुर स्टेट हाईवे से हटकर होने के कारण उतना प्रकाश में नहीं आ पाया ना ही इस का समुचित विकास हो पाया।

2. इस अति प्राचीन मंदिर का अतिशय यह है कि मंदिर जी के शिखर से बूंद बूंद गंधोदक भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा के सामने गिरता है। #आओ_जैनधर्म_को_जानें

3. विश्व वंदनीय जैन आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनि राज ने ससंघ कई बार बिहार दौरान इस तीर्थ क्षेत्र मैं भगवान शांतिनाथ के दर्शन किए हैं। हालांकि अब यह तीर्थ क्षेत्र विकास की ओर अग्रसर है।

4. चोपरा ग्राम के मंदिर जी में कई प्राचीन शिलालेख पाये गए है । मंदिर जी का निर्माणकाल नवमी सदी का है । यहाँ कुल सात प्रतिमाये पाषाण की प्राचीन है जिनमे से दो पद्मासन है । खड्गासन प्रतिमाओ की ऊंचाई ४ फ़ीट तक है ।

5. मूलनायक प्रतिमा जी शांतिनाथ प्रभु की है । यहाँ की प्रतिमाओ की रचना राजा नरसिंगदेव के काल की है तथा मंदिर की रचना सुल्तान गयाशाह के काल की है ।

6. कहा जाता है की आसपास के १३८४ ग्रामो में ऐसा मंदिर और प्रतिमाये यही है । यहाँ के अतिशय के बारे में कहा जाता है की कई सदियों पहले यहाँ मंदिर जी में बारह महीने केसर की या पानी की बूंदो की वर्षा हुआ करती थी । ऐसा कई वर्षो तक हुआ। #Aao_JainDharm_Ko_Jaanein

7. समय के थपेड़ो ने इस मंदिर को खंडहर बना दिया किन्तु प्रतिमाये सुरक्षित रही । आज से २०० वर्ष पहले इस मंदिर जी के हालत काफी ख़राब हो गयी थी किन्तु कालांतर में यहाँ दक्षिण से आये एक मुनि सूर्यसागर जी ने संवत १९२७ में इस मंदिर जी के जीर्णोद्धार की प्रेरणा दी और यहाँ के और आसपास के कुछ व्यापारियों ने इस मंदिर जी का जीर्णोद्धार कराया। आज ये मंदिर और प्रतिमाये अपने प्राचीन वैभव की गौरव गाथा याद दिला रही है ।

तो आये और इस क्षेत्र के भी दर्शन करे, जब भी आप आसपास से गुजरे ।

मंदिर का समय
सुबह: 5:30 पूर्वाह्न - 11:30 पूर्वाह्न, शाम: 5:30 अपराह्न - 8:30 अपराह्न,

कैसे पहुंचा जाये?
चोपड़ा चौबीसा गांव मध्य प्रदेश में दमोह जिले की जबेरा तहसील में स्थित है। यह जबेरा से 16 किमी और दमोह से 35 किमी दूर है।

ट्रेन: दमोह रेलवे स्टेशन
एयर: जबलपुर एयरपोर्ट


पता: श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर, चोपड़ा चौबीसा, तहसील - जबेरा, जिला - दमोह (मध्य प्रदेश)
ग्राम/नगर : चोपड़ा चौबीसा, तहसील: जबेरा, जिला: दमोह, राज्य: मध्य प्रदेश, देश: भारत, पिनकोड: 470663

निवेदक,
सुलभ जैन (बाह)

जैन धर्म तीर्थ यात्रा - Post No. 96


जय जिनेन्द्र जी, आज की भाव वंदना में चलते हैं, भोपाल से मात्र 18 किमी दूर, एक ऐसे अद्भुत तीर्थक्षेत्र पर जहाँ का इतिहास बहुत प्राचीन है, कभी पूरे क्षेत्र में 52 भव्य जिनालय हुआ करते थे । अब 1932 में जीर्णोद्धार के बाद 1 मन्दिर ही शेष है ।

करीब 1200 वर्ष पूर्व 9-10 वीं सदी में, राजा पाड़ाशाह जो कि दिगम्बर जैन के अनुयायी थे । एक बार वह व्यापार के सिलसिले में इस क्षेत्र में आये, उस समय उनके पास लोहे आदि धातुओं का सामान था ।

माना जाता है, इस स्थान पर एक पारसमणि के संपर्क से पूरा सामान स्वर्ण में बदल गया था, तत्पश्चात उन्होंने इस स्थान पर ही 52 भव्य जिनालयों को बनवाया । वर्षों बाद यहां मुगलों के आक्रमणों में समसगढ़ के सभी मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया, और प्रतिमाओं को खंडित कर दिया गया, जिनकी मौजूदगी आज भी इस क्षेत्र पर है।

यहां की भव्यता का अनुमान आप शेष बची प्रतिमाओं की दिव्यता से लगाया जा सकता है,, जिनबिम्बो का अविरल तेज सहज ही मन को प्रफुल्लित करता हैं ।

प्राचीन जैन मंदिर में श्री १००८ कुंथुनाथ भगवान की खड्गासन प्रतिमाजी, मूलनायक प्रतिमा शांतिनाथ भगवान और अरहनाथ भगवान हैं। यहां भगवान श्री पार्श्वनाथ जी की मनोहर प्रतिमा जी विराजमान हैं ।

यहां वर्ष 1932, भोपाल निवासी श्री जुम्मालाल पन्नालाल जैन ने यहां एक मंदिर का जीर्णोद्धार कराया ।
स्थान
पता: श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर अतिशय क्षेत्र, समसगढ़, जिला-भोपाल (मध्य प्रदेश)
ग्राम/नगर: समसगढ़, तहसील: हुजूर, जिला: भोपाल, राज्य: मध्य प्रदेश, देश: भारत, पिनकोड: 462044

मंदिर जी का समय
सुबह: सुबह 5:30 से शाम: 8:30 बजे,

कैसे पहुंचा जाये?
समसगढ़ भोपाल जिले का एक गाँव है। यह हुजूर तहसील और फंदा ब्लॉक में स्थित है। गांव में एक जैन मंदिर है।
यह भोपाल से 18 किलोमीटर दूर है।

ट्रेन: भोपाल जंक्शन रेलवे स्टेशन
एयर: भोपाल एयरपोर्ट

इस पावन क्षेत्र का दर्शन अवश्य करें ।
नमनकर्ता
सुलभ जैन (बाह)
Sulabh Jain (Bah) Distt. Agra
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