जैन धर्म तीर्थ यात्रा - Post No. 94


झीलों की नगरी, उदयपुर (राजस्थान) में स्थित यह पावन तीर्थ लगभग 753 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। जिसके प्रमाण यहां पर एक शिलालेख के अनुसार विक्रम संवत 1325 अंकित हैं।

"श्री चन्द्र पार्श्वनाथ का जी मन्दिर"

यहां पर मुलनायक प्रभु श्री चंदा पार्श्वनाथ जी की 35 इंच ऊंचाई एवं 30 इंच चौड़ाई आकर की, पद्मासन मुद्रा में, श्वेत वर्ण की, सात फणो से सुशोभित, सुंदर परिकर में प्रतिमा जी प्रतिष्ठित है। ऐसा कहा जाता है कि चन्द्रमा जैसी शीतल और सफेद रोशनी से चमकती यह प्रतिमा जी बिल्कुल चन्द्रमा जी की तरह दिखती है। जिनके दर्शन करने से मन को शीतलता और रोशनी मिलती है। यह सुंदर प्रतिमा सभी दर्शांथियों को अपनी ओर आकर्षित करती है जिसकी वजह यह पावन प्रतिमा जी "श्री चन्द्र पार्श्वनाथ जी भगवान" के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह तीर्थ 108 श्री पार्श्वनाथ जी तीर्थ की श्रृंखला में सम्मिलित है।

इतिहास के अनुसार... मेवाड़ त्याग, बलिदान, पराक्रम और वीरों की धरती के नाम से जाना जाता है। कई महान शूरवीरों और इतिहास रचने वालों की भी यह जन्म स्थली रही है। जिनकी त्याग, बलिदान एवं पराक्रमी गाथाओं को सुनकर आज भी हमें गर्व होता है और हम नतमस्तक हो जाते है.. इस जिनालय का जीर्णोद्वार श्री रघुनाथ सिंह जी खाब्या साहब ने वि. सं.1982 में करवाया था। मंदिर की दीवारों और छत पर पुरानी पेंटिग्स और कई रंगों की सेरेमिक टाईल्स और कांच पर काम बहुत ही सुंदर है। वर्तमान में परिकर की अजंनशलाका परम पूज्य प्रेमरामचंद्रसूरिजी म.सा.समुदाय के प.पू.आचार्य श्री किर्तीयशसुरीजी म. सा. की निश्रा में वि. सं. 2067 के कार्तिक सुद 13 से कार्तिक वद 5 (19 से 25 नवम्बर 2010) बोरीवली वेस्ट, मुंबई में करावायी गयी थी।जिसकी प्रतिष्ठा उदयपुर में प. पू. गणिवर्य श्री दिव्यकिर्तीविजय जी म.सा. और प. पू. श्री पूण्यकिर्तीविजय जी म. सा. की निश्रा में वि. सं. 2067 के मागसर सुद 9 को (15.12.2010) को संपन्न हुई थी। #आओ_जैनधर्म_को_जानें #Aao_JainDharm_Ko_Jaanein

उदयपुर में लगभग 75 से अधिक जिनालय प्रतिष्ठित है। इस पावन भूमि पर जैन तपागच्छ की उदगम स्थली प्राचीन आयड़ जैन श्वेताम्बर महातीर्थ भी स्थापित है। साथ में सविना पार्श्वनाथ जी का मंदिर भी प्रतिष्ठित है जो कि 108 पार्श्वनाथ जी में सम्मिलित है। प्रभु श्री पद्मनाथ स्वामी जी का भी यहां एक बड़ा जिनालय भी स्थापित है। जो कि आने वाले 24 तीर्थंकरों के प्रथम तीर्थंकर भगवान है।

उदयपुर के समीप भी कई प्राचीन एवं नवीन तीर्थो की श्रंखला है जिसमें विश्वविख्यात श्री केशरीया जी तीर्थ, श्री राणकपुर जी तीर्थ और श्री करेड़ा पार्श्वनाथ जी तीर्थ भी प्रतिष्ठित है। इन सभी तीर्थों के सहित उदयपुर में सुंदर, व्यवस्थित और वातानुकूलित धर्मशाला एवं भोजनशाला की अच्छी सुविधाएं है। उदयपुर एन.एच. 8 और 76 के मुख्य मार्ग पर स्थित है। प्रसिद्ध श्रीनाथ जी भगवान का पावन मंदिर भी नाथद्वारा में स्थित है जो कि उदयपुर से लगभग 40 km की दूरी पर है। उदयपुर पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से कई आवागमन के साधन है। यह खूबसूरत शहर रेल और हवाई मार्ग से भी जुड़ा हुआ है। #आओ_जैनधर्म_को_जानें #Aao_JainDharm_Ko_Jaanein

श्री चंदा पार्श्वनाथ जी का उल्लेख "135 नाम गर्भित श्री पार्श्वनाथ जी स्तवन", "श्री पार्श्वनाथ जी नाम माला", "तीर्थ माला", "श्री पार्श्वनाथ चैत्य परीपती".. ग्रंथों में भी है।

स्तुति:
जे नित्य अविरत पुनम शशीनी चांदनी फेलावती,
संतापने सहु ताप टाळी भविक मन मलकावती,
आत्मातणो उदयंकरी पूर हर्षनां उभरावती,
ते पार्श्व चंदा मूरत नमतां हुं वर्यो, टाढक अति..

जाप मंत्र: ॐ ह्रीं अर्हं, श्री चंदा पार्श्वनाथाय नमः

पता: श्रीचंदा पार्श्वनाथ श्वेतांबर जैन मंदिर , घंटाघर - पेलेस मेन रोड , उदयपुर (राजस्थान)

लेख में किसी भी प्रकार की त्रुटी और जिनशासन के विरुद्ध कुछ लिखा गया हो तो क्षमा और...
Regards

पोस्ट आभार - श्री अनिल मेहता जी








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